चिंतन
नफरत की दीवार नहीं , अब प्रेम धरातल चाहिए
आँखों में अंगार नही, न द्वेष न इर्ष्या चाहिए
अपनी प्यारी माटी में, वही सौंधी खुशबू चाहिए
जो देश-दिलों को जोड़ सके, हमें ऐसा चिंतन चाहिए
भूखे-प्यासे बच्चों को देख, आँखें मेरी भर आती हैं
सड़कों पर फिरती कलियों पर, तो नज़र सभी की जाती है
फिर भी हम क्यों चुप रहते हैं? आँखें अंधी हो जाती हैं
बचपन यह सुगन्धित हो, कुछ ऐसी करनी चाहिए
जो देश-दिलों को ....
कहीं लड़की पैदा होने पर, ह्त्या उसकी कर दते हैं
कहीं दहेज़ के दानव जीवन-भर, खुशियाँ उसकी हर लेते हैं
क्यों बड़े हुए बच्चों ने अब, माँ से नाता तोड़ लिया ?
नारी के हित में जो हो, वह प्रयास निरंतर चाहिए
जो देश-दिलों को जोड़ सके.....
'कूल-कूल' कह करके यहाँ , हुआ ठंडा जोश जवानी का
क्यों भूल गये वह क़र्ज़ युवा , उस वीर भगत बलिदानी का?
नैतिक मूल्यों को भूले सब, क्यों पैसा ही भगवान हुआ?
मेहनत की मिटटी से उपजा, हर फूल महकना चाहिए
जो देश-दिलों को जोड़ सके हमे ऐसा चिंतन चाहिए
जो देश-दिलों को जोड़ सके हमे ऐसा चिंतन चाहिए
By:
Gaurav Abrol
abrolgaurav91@gmail.com
Comments
Post a Comment